आईडीआर ऐक्ट की खामियों के चलते अवैध सिगरेट निर्माण को बढ़ावा मिल रहा है
गुरुग्राम, 13 जून 2019ः राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (फरीदाबाद, नोएडा व गाजियाबाद समेत) अवैध सिगरेटों की निर्माण स्थली बनता जा रहा है और अगर इस पर लगाम न लगाई गई तो यह कानून व्यवस्था की बड़ी समस्या बनने के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी चिंता भी बन जाएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक गैर कानूनी सिगरेटों के निर्माण (जिनमें कई विदेशी ब्रांडों की नकल भी शामिल है) में तीव्र वृद्धि इसलिए हो रही है क्योंकी कानून में खामियां हैं, नतीजतन सरकार को सालाना 13,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। कहने की जरूरत नहीं की इस मुद्दे पर तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
सिगरेट लाइसेंसों का नियमन इंडस्ट्रीज़ डैवलपमेंट एंड रेग्युलेशन ऐक्ट, 1951 द्वारा किया जाता है। सन् 1991 में हुई डि-लाइसेंसिंग के बाद केवल पांच इंडस्ट्रीज़ ही अनिवार्य लाइसेंसिंग के तहत हैं जिनमें तंबाकू के सिगार व सिगरेट एवं तंबाकू के सबस्टीट्यूट शामिल हैं। सन् 1999 के बाद से इनके निर्माण के लिए कोई भी नया लाइसेंस नहीं दिया गया है। लेकिन फिर भी कानून में खामी के चलते गैर कानूनी सिगरेटों का निर्माण जारी है। दिल्ली के एक वरिष्ठ वकील अजय कुमार कहते हैं, ’’इस ऐक्ट में ’फैक्ट्री’ की परिभाषा उत्पादों पर कोई अपवाद प्रस्तुत नहीं करती। यह कहती है की 50 कामगारों के साथ व बिजली से चलने वाली यूनिट या 100 कामगारों के साथ बगैर बिजली की यूनिट, एक फैक्ट्री स्थापित कर सकती है जिसके लिए अनिवार्य लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती और यहीं पर समस्या पैदा होती है।’’ बीते सालों में पूरे भारत में सूक्षम-लघु-मध्यम उद्यमों के अंतर्गत कई गैर कानूनी सिगरेट निर्माण इकाईयां पनप चुकी हैं। भारतीय तंबाकू बोर्ड के अनुसार उसके पास 2018 में 41 तंबाकू मैन्युफैक्चरर पंजीकृत थे।
पूरे एनसीआर में एजेंसियों द्वारा हाल ही में छापेमारी की गई, जिनमें फरीदाबाद डीसीपी, स्वास्थ्य विभाग-हरियाणा, गाजियाबाद और नोएडा डिस्ट्रिक्ट टोबैको कंट्रोल कमिटी शामिल थीं। इन छापों में पाया गया की ये छोटी मैन्युफैक्चरिंग इकाईयां न केवल अपने ब्रांड बना रही हैं बल्कि पेरिस, विन, ऐस्स, मोंड आदि जैसे मशहूर विदेशी ब्रांडों की नकल भी तैयार कर रही हैं। गैर कानूनी तरीके से बनाई गई इन सिगरेटों के पैकेटों पर कोई ग्राफिक स्वास्थ्य चेतावनी नहीं है जैसे की ब्व्ज्च्। का आदेश है तथा इन पर किसी प्रकार की अन्य सूचनाएं भी नहीं होती जो की लीगल मैट्रोलाॅजी, पैकेजिंग एंड कमाॅडिटी रूल्स 2011 के मुताबिक अनिवार्य होती हैं। ये मैन्युफैक्चरर इन सिगरेटों पर टैक्स चुकाने से भी बच जाते हैं जिस वजह से इनकी सिगरेटें कानूनी सिगरेटों के मुकाबले बहुत सस्ती होती हैं। एनसीआर के अलावा पंजाब, हरियाणा, यूपी, एमपी व राजस्थान में भी ऐसी बहुत सी यूनिट कुकुरमुत्ते सी उग आई हैं।
जानेमाने स्वास्थ्य विशेषज्ञ डाॅ संजीव बगाई कहते हैं, ’’भारत सरकार ने 1999 के बाद से सिगरेट निर्माण हेतु नए लाइसेंस देने से मना कर दिया था लेकिन गैर कानूनी सिगरेटों से सरकार की उस तंबाकू नियंत्रण नीति को झटका लग रहा है।’’ इसमें कोई हैरानी की बात नहीं की भारत अवैध सिगरेटों का दुनिया का चैथा सबसे बड़ा बाजार बन चुका है, सरकार को मिलने वाले राजस्व पर बड़ा नुकसान होता है। इस बढ़ते गैर कानूनी कारोबार के संदर्भ में फिक्की की एक रिपोर्ट में केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड के पूर्व चेयरमैन नजीब शाह का एक वक्तव्य प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने बताया की गैर कानूनी मैन्युफैक्चरिंग होने से और टैक्स की अदायगी न होने से सरकार के राजस्व को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचता है इसलिए यह अत्यावश्यक है की सरकार इस मुद्दे पर नीतियां बनाए।
सेंटर फाॅर पब्लिक अवेयरनेस के आर एस तिवारी का कहना है, ’’यह गंभीर मुद्दा है और स्वास्थ्य मंत्रालय को तत्काल उपाय कर के इसे बढ़ने से रोकना चाहिए।’’ कुमार कहते हैं की मंत्रालय को आईडीआर ऐक्ट में उपयुक्त संशोधन करने चाहिए जिससे गैर कानूनी सिगरेट बनाने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही हो सके।