केंद्र सरकार ने एक बार फिर तीन तलाक बिल लोकसभा में पेश किया हैं। पहले भी यह बिल लोकसभा से दो बार पास हो चुका है।
केंद्र सरकार ने तीन तलाक बिल एक बार फिर लोकसभा के नए सत्र में पेश किया। पहले दो बार यह बिल लोकसभा में पास हो चुका है लेकिन बिल के कानून में तब्दील होने के लिए इसका राज्यसभा में पास होना जरूरी है लेकिन हर बार सरकार की यह कोशिश विफल हो जाती है।
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट के तुरंत तीन तलाक (तलाक-उल-बिददत) के खिलाफ दिए गए महतवपूर्ण फैसले के बाद से सरकार इस बिल को पारित कराने की कोशिश में लगी है। 2017 से अब तक इस बिल को सदन में क्या क्या विरोध और समर्थन झेलना पड़ा और अब तक इसमें कितने बदलाव हो चुके हैं, इसकी जानकारी इस प्रकार हैं –
-साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो बनाम भारत संघ के केस में फैसला देते हुए तुरंत प्रभाव से तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखने वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से इस दिशा में 6 महीने के भीतर कानून लाने को कहा था।
-इसके परिणाम स्वरुप, भारत सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक बनाया और 28, दिसंबर, 2017 को लोकसभा में पेश किया। इस बिल में मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक (एसएमएस, ईमेल, वॉट्सऐप आदि पर) दिए तीन तलाक को अमान्य करार दिया गया और ऐसा करने वाले पति को तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया। हालांकि, इसे आरजेडी, एआईएमआईएम, बीजेडी, एआईएडीएमके और एआईएमल का विरोध झेलना पड़ा जबकि कांग्रेस ने इस बिल का समर्थन किया था । बिल में 19 संशोधन सुझाए गए, लेकिन सभी खारिज कर दिए गए। राज्यसभा में भी बिल पास नहीं हो सका।
-तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद इसका इस्तेमाल होने पर सरकार अध्यादेश लेकर आई जिसे सितंबर 2018 में राष्ट्रपति ने अपने हस्ताक्षर सहित मंजूरी दे दी। इस अध्यादेश के मुताबिक तीन तलाक देने पर पति को तीन साल की सजा का प्रावधान रखा गया। हालांकि, किसी संभावित दुरुपयोग को देखते हुए विधेयक में अगस्त 2018 में कुछ संशोधन कर दिए गए थे।
-जनवरी 2019 में इस अध्यादेश की अवधि पूरी होने से पहले दिसंबर 2018 में एक बार पुनः सरकार तीन तलाक बिल को लोकसभा में नए सिरे से पेश करने पहुंची। 17, दिसंबर 2018 को लोकसभा में बिल पेश किया गया। हालांकि, एक बार फिर विपक्ष ने राज्यसभा में इस बिल को पेश नहीं होने दिया और बिल को सिलेक्ट कमिटी में भेजने की मांग की जाने लगी। एक बार फिर बिल अधर में लटक गया और सरकार ने फिर से अध्यादेश जारी कर तीन तलाक को अपराध घोषित कर दिया।
-इस अध्यादेश के खत्म होने से पहले ही 16वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो गया और लोक सभा भंग हो गयी और यह बिल एक बार फिर संसद में पेश नहीं हो सका। आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर सरकार में आने के बाद बिल को फिर से सदन में पेश करने की तैयारी की और 21 जून, 2019 को विपक्ष के विरोध के बीच यह विधेयक 74 के मुकाबले 186 मतों के समर्थन से लोक सभा में पेश किया गया।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में विधेयक पेश करते हुए कहा कि विधेयक पिछली लोकसभा में पारित हो चुका है लेकिन सोलहवीं लोकसभा लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के कारण और राज्यसभा में लंबित रहने के कारण यह निष्प्रभावी हो गया और सरकार इसे दोबारा इस सदन में लेकर आई है। उन्होंने विधेयक को लेकर विपक्ष के कुछ सदस्यों की आपत्ति को सिरे से दरकिनार करते हुए संविधान के मूलभूत अधिकारों का हवाला दिया, जिसमें महिलाओं और बच्चों के साथ किसी भी तरह से भेदभाव का निषेध किया गया है।
इसके बाद स्पीकर श्री ओम बिरला ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से विधेयक को आगे बढ़ाने का आदेश दे दिया। विपक्ष के पुरजोर विरोध के बाद सरकार ने पहले ही कुछ प्रमुख बदलाव किए थे। इसके तहत…
1- इस मामले में एफआईआर तभी स्वीकार्य की जाएगी जब एफआईआर, पत्नी स्वयं या उसके नजदीकी खून वाले रिश्तेदार दर्ज कराएंगे। विपक्ष और कई संगठनों की चिंता की थी कि इस मामले में एफआईआर का कोई दुरुपयोग कर सकता है।
2- पति और पत्नी के बीच मैजिस्ट्रेट समझौता करा सकते हैं, अगर बाद में दोनों के बीच इसकी पहल होती है। इससे पहले के बिल में इसके लिए प्रावधान नहीं थे। विपक्ष का तर्क था कि इसकी व्यवस्था होनी चाहिए।
3- तत्काल तीन तलाक अभी भी गैरजमानती अपराध बना रहेगा लेकिन अब इसमें ऐसी व्यवस्था कर दी गई है, जिसके बाद मैजिस्ट्रेट इसमें जमानत दे सकता है लेकिन इससे पहले पत्नी को सुनवाई का मोका देना आवश्यक होगा । इससे पहले बिल में तीन साल की सजा के प्रावधान के बाद जमानत की गुंजाइश नहीं दी गई थी।