ओडिशा में आये फोनी तूफान ने ओडिशा के कई तटीय जिलों को तबाह कर दिया, इस तूफान में ज्यादा जान-माल की हानि नहीं हुई क्योंकि मौसम विभाग की सर्तकता से एनडीआरएफ और आर्मी ने पहले ही ये जगह खाली करवा दी थी। इतने बड़े तूफान से ओडिशा अपने दम पर निपटा, क्योंकि आप ये भी कह सकते हैं कि ओडिशा के सिर पर जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) का हाथ है। इसीलिए हर कठिनाई से ओडिशा खुद लड़कर बाहर आ जाता हैं। जगन्नाथ पुरी के अलावा भी ओडिशा में अन्य देवी- देवताओं का वास हैं। ओडिशा को धार्मिक पुरी भी कह सकते हैं क्योंकि यहां बसता है भारत का धार्मिक इतिहास। अगर आप ओडिशा घूमने के लिए जाते हैं तो समुद्र के अलावा आप इन प्राचीन मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं।
भुवनेश्वर लिंगराज मंदिर
लिंगराज मंदिर भगवान हरिहर को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। जो भगवान शिव और विष्णु का ही एक रूप हैं। यह मंदिर पूर्वी भारतीय राज्य ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है यह सबसे बड़ा मंदिर हैं और साथ ही भारत के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। भुवनेश्वर शहर की यह सबसे मुख्य और आकर्षक जगह है और साथ ही ओडिशा राज्य घुमने आए लोगो के आकर्षण का यह मुख्य केंद्र है।
कोणार्क में स्थित सूर्या मंदिर
विश्व प्रसिद्ध कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर भारतीय राज्य ओडिशा के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां की लोगों की मान्यता के अनुसार कोणार्क में स्थित है यह मंदिर “पर्यटन के सुनहरे त्रिभुज” के तीन बिंदुओं में से एक है। इस त्रिभुज के दो अन्य बिंदु हैं- मंदिरों का शहर भुवनेश्वर और पुरी का भगवान जगन्नाथ मंदिर।
पुरी में स्थित गुंदिचा घर मंदिर यहां के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक कहा जाता हैं। गुंडिचा मंदिर एक हिंदू मंदिर है, जो ओडिशा पुरी के मंदिर भूमि में स्थित है। यह पुरी की प्रसिद्ध वार्षिक रथ यात्रा का गंतव्य है। यात्रा से पहले यह साल भर खाली रहता है, मंदिर में जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की सात पूर्ण दिनों (कुल 9 दिनों सहित कुल रथयात्रा के शुरू होने और समापन दिवस) के दौरान प्रतिवर्ष वार्षिक उत्सव के दौरान देवताओं की छवियों पर कब्जा किया जाता है।
भगवान की गतिविधियों में विश्वास रखने वाले कहते हैं कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं।